किसी भी दंपत्ति के लिए सबसे ज्यादा खुशी का पल होता है जब उनकी संतान का जन्म होता हैं। संतान प्राप्ति का सुख जीवन के अनमोल पलों में से एक हैं और इस सुख की कामना हर दंपत्ति करता हैं। अधिकांश लोगों को खुशी के ये पल आसानी से नसीब हो जाते हैं लेकिन कई लोग ऐसे होते हैं जिनके अथक प्रयास के बाद भी उनको संतान सुख की प्राप्ति नहीं होती|दुनियाभर में ना जाने कितने ही लोग है जो सन्ताहीन है जिन्हे संतान नहीं है और वह संतान के लिए तरस रहे हैं. ऐसे में कहा जाता है कि भगवान शिव ने बताया है कि किस पाप के कारण मनुष्य को संतानहीन रहना पड़ता है. जी हाँ, और आज हम आपको उसी पाप के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके कारण इंसान को संतानहीन रहना पड़ता है. आइए जानते है इससे जुडी एक पौराणिक कथा.
पौराणिक कथा – एक बार भगवान शिव और माता पार्वती कैलाश शिखर पर बैठे हुए थे और उन दोनों के बिच ज्ञान की बातें हो रही थी. पुराणों के अनुसार भगवान शिव ही ज्ञान के देवता है. जो मनुष्य शिवजी की पूजा करता है उन्हें ज्ञान प्राप्त होता है. ऐसे भगवान शिव को माता पार्वती ने एक प्रश्न पूछा और वह प्रश्न यह था कि मनुष्य को किस पाप के कारण संतानहिन रहना पड़ता है. उस समय भगवान शिव ने माता पार्वती को जो उत्तर दिया वह हम आप के समक्ष प्रस्तुत करने जा रहे है.
भगवान शिव ने कहा देवी सुनो जो मनुष्य निर्दय होकर मृगों, प्राणियों और पक्षियों के बच्चों को मारकर खा जाता है वह मनुष्य मरने के बाद दीर्धकाल तक नरक की यातना प्राप्त करता है. शिवजी आगे कहते है ऐसा मनुष्य जब सभी यातानाओं को सहन करके लंबे समय के बाद फिर से मनुष्य बनकर जन्म लेता है तो उसे संतान का सुख प्राप्त नहीं होता और वह संतानहीन होकर दुखी ही मृत्यु को प्राप्त हो जाता है.
इसके अलावा शिव पुराण में कई ऐसे पाप वर्णित हैं जिसे भगवान शिव कभी क्षमा नहीं करते। ऐसा व्यक्ति हमेशा ही शिव के कोप का भाजन होगा और कभी भी सुखी जीवन व्यतीत नहीं कर सकता.
सोच से किए जाने वाले पाप
आपने सुना होगा कि ऊपरवाले से कुछ छुपा नहीं होता। यहां तक कि आप अपने मस्तिष्क में जो सोच रहे होते हैं, वह भी भगवान से छुपा नहीं है। इसलिए भले ही बात और व्यवहार में आपने किसी को नुकसान ना पहुंचाया हो, लेकिन अगर मन में किसी के प्रति कोई दुर्भावना है या आपने किसी का अहित सोचा हो, तो यह भी पाप की श्रेणी में आता है।
दूसरों के पति या पत्नी पर बुरी नजर रखना, या उसे पाने की इच्छा करना भी पाप की श्रेणी में रखा गया है।
दूसरों का धन अपना बनाने की चाह रखना भी भगवान शिव की नजर में अक्षम्य अपराध और पाप है।
किसी भोलेभाले और निरपराध इंसान को कष्ट देना, उसे नुकसान पहुंचाने, या धन-संपत्ति लूटने, उसके लिए बाधाएं पैदा करने की योजना बनाना या ऐसी सोच रखना भगवान शिव की नजरों में हर हाल में माफी ना देने योग्य पाप है।
किसी के सम्मान को हानि पहुंचने की नीयत से झूठ बोलना ‘छल’ की श्रेणी में आता है और अक्षम्य पाप का भागीदार बनाता है।
समाज में किसी के मान-सम्मान को हानि पहुंचाने की नीयत से या उसकी पीठ पीछे बातें करना या अफवाह फैलाना भी एक अक्षम्य पाप है।
गुरु, माता-पिता, पत्नी या पूर्वजों का अपमान भी आपको भूलकर भी नहीं करनी चाहिए।
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